
लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया।
12 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दी थी.
इसके बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की सोच को आगे बढ़ाने के लिए ये क़दम उठाया गया है | नियमों के अनुसार, संविधान में इन संशोधनों को लोकसभा से पारित होने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी। कांग्रेस ने आज के दिन को उदाहरण के रूप में लेते हुए बताया कि संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के लिए मतदान में 461 सदस्यों ने हिस्सा लिया।
यदि यह विधेयक पारित करने के लिए मतदान होता, तो उन 461 में से 307 को इसके पक्ष में मतदान करना होता, लेकिन केवल 269 ने ही ऐसा किया, जिसके कारण कांग्रेस ने कहा, “इस विधेयक को समर्थन नहीं मिला है… कई दलों ने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई है।”
फ़िलहाल, विधेयक को संभवतः एक संयुक्त समिति के पास भेजा जाएगा, जिसका गठन प्रत्येक पार्टी की लोकसभा संख्या के आधार पर किया जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि भाजपा के पास अधिकतम सदस्य होंगे और वह समिति का नेतृत्व करेगी |
बीजेपी के पास नहीं है बहुमत
अब चूंकि ये बिल संविधान संशोधन बिल है तो इसे लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत से पास नहीं करवाया जा सकता, बल्कि इसके लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है और दो तिहाई बहुमत तो बीजेपी के पास न तो लोकसभा में है और न ही राज्यसभा में. इसे थोड़ा और विस्तार से समझने हैं.
543 में से 362 सांसदों का समर्थन चाहिए
लोकसभा में सांसदों की कुल संख्या है 543. दो तिहाई बहुमत के लिए 362 सांसदों का समर्थन चाहिए होता है. बीजेपी के अपने कुल 240 सांसद है. एनडीए के सभी घटक दलों के सांसदों को जोड़ने के बाद भी बीजेपी के पास नंबर 292 होता है. यानी कि बीजेपी के पास लोकसभा में इस बिल को पास करवाने के लिए अब भी कम से कम 70 सांसदों का समर्थन चाहिए और वो समर्थन फिलहाल बीजेपी को मिलता नहीं दिख रहा है.
जेपीसी के पास भेजा गया बिल
राज्यसभा में भी कमोबेश ऐसी ही कहानी है. राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 243 है. दो तिहाई बहुमत के लिए 162 सांसदों का समर्थन चाहिए, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास राज्यसभा में सांसदों की कुल संख्या 112 है. 6 मनोनित सांसद हैं तो उनको लेकर संख्या होती 118 है फिर भी राज्यसभा में बीजेपी के पास 44 सांसद कम हैं. ऐसे में इस बिल का अटकना तो तय ही है. फिलहाल बिल जेपीसी के पास भेजा गया है तो हो सकता है कि जेपीसी में चर्चा के दौरान बीजेपी कुछ विरोधी दलों को अपनी ओर मिला ले और इस बिल पर कुछ और भी सांसदों को पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर ले, लेकिन तब भी बीजेपी दो तिहाई बहुमत के नंबर गेम से बहुत दूर नजर आ रही है.
प्रस्ताव के बाद विपक्ष ने तीखे हमले किए
विधेयक पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, “यह संविधान विरोधी विधेयक है। यह हमारे राष्ट्र की संघवाद के खिलाफ है। हम इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं।”
आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष सांसद और चन्द्रशेखर आजाद ने कहा, “यह संघीय ढांचे पर हमला है। यह राज्य सरकारों की शक्ति को कम करता है…हम संविधान को मानने वाले लोग हैं…हम इसका विरोध करेंगे…”|
जानिए क्या है “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक
1. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने इस योजना का प्रस्ताव रखा था, जिसमें तर्क दिया गया था कि हर साल बार-बार चुनाव कराने से अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए इसने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी।
2. योजना के पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव की तिथियों को एक साथ रखा जाएगा। इसके बाद, योजना के अगले चरण में 100 दिनों के भीतर नगर निगम और पंचायत चुनाव भी इनके साथ ही कराए जाएंगे।
3. आम चुनाव के बाद, राष्ट्रपति एक अधिसूचना जारी कर सकते हैं, जिसमें लोक सभा के आहूत होने की तिथि को ‘नियत तिथि’ घोषित किया जाएगा, जिससे निरन्तर समन्वय सुनिश्चित हो सके।
4. नवगठित राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले आम चुनावों के साथ छोटा कर दिया जाएगा।
5. इन सुधारों के सफल क्रियान्वयन की निगरानी और सुनिश्चित करने के लिए एक कार्यान्वयन समूह की स्थापना की भी कोविंद समिति द्वारा सिफारिश की गई थी।
6. पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में अनुच्छेद 324ए को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है। समिति ने सभी चुनावों के लिए एकीकृत मतदाता सूची और फोटो पहचान पत्र बनाने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन का भी प्रस्ताव रखा है। लेकिन इस संशोधन के लिए राज्यों से अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
7. त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में, नए चुनाव बुलाए जाएंगे, लेकिन नव निर्वाचित सदन का कार्यकाल अगले आम चुनाव तक ही बढ़ाया जाएगा।
8. समिति ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव या त्रिशंकु स्थिति की स्थिति में नए चुनाव कराने की वकालत की है। नव निर्वाचित लोकसभा पिछली लोकसभा का शेष कार्यकाल पूरा करेगी, जबकि राज्य विधानसभाएं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने तक चलती रहेंगी, जब तक कि उन्हें पहले भंग न कर दिया जाए।
9. चुनाव आयोग को सलाह दी जाती है कि वह कुशल चुनाव प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम और वीवीपैट जैसे आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिए सक्रिय रूप से योजना बनाए।